Political influence and interference based on ideological party opposition debate सदन की राय में शिक्षा जगत में राजनेतिक प्रभाव अथवा हस्तक्षेप अहितकर है. पक्ष विपक्ष
किसी भी मानवीय समुदाय एवं राष्ट्र में शिक्षा जगत से बढ़कर कोई भी क्षेत्र नहीं होता है. किसी भी राष्ट्र की प्रगति एवं उन्नति वहाँ की शिक्षा पर निर्भर करती है. हमारे देश के केन्द्रीय शासन में शिक्षा विभाग दान की गौ (गाय) के रूप में ग्रहण किया गया है, जिसकी और न जनता का ध्यान है और न शासन का ही.
(The famous satirist Lal Shukla said education goals) प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री लाल शुक्ल ने शिक्षा को लक्ष्यकर कहा था ! (Party Opposition Debate)
हमारी भारतीय शिक्षा किसी चौराहे पर खड़ी उस कुत्तिया के समान है, जिसे हर कोई राहगीर डंडा बताते हुए और लात मारते हुए आगे निकल जाता है.
महोदय आज चाहे कला का क्षेत्र हो, चाहे धर्म का, चाहे विज्ञानं का, राजनीति उनमें हावी हो चुकी है. कदाचित इसलिए दुनिया में चारों और आतंक, भ्रष्टाचार, असंतोष, संघर्ष की स्थिति निर्मित है.
महोदय हम जिस आजादी को दुल्हन बनाकर लाये थे, उसे भी हमारे नेताओं ने तवायफ या वेश्या बना डाला है. मेरे मत में आज की राजनीति की भ्रष्टता Party Opposition Debate और देशद्रोह के तत्व प्रविष्टि हो चुके है. अपराधियों का राजनीतिकरण हो गया है. दागी और बागी नेताओ की भारतीय राजनीति में कमी नहीं रह गई है. किसी कवि ने ठीक ही कहा है.
“राजनीति पर हो गया, गुंडों का अधिकार.
सज्जन की तक़दीर में, सारे अत्याचार.”
“राजनीति के संत ये, इनके रंग हजार.
जहँ जहँ पाँव पड़ें, तहँ तहँ बंटाधार”
“अभिनेता नेता बने, नेता बने दलाल.
जनता के विश्वास की, खींच रहे हैं खाल.
“अभिकारी सब भ्रष्ट है, नेता नमक हराम.
जाने अब देश का, क्या होगा परिणाम.”
महोदय आचार्य विनोद भावे ने शिक्षा पर राजनेतिक नेताओ के अधिकार और नियंत्रण को जुल्म माना था. वैसे भी नेहरूजी के शब्दों में शिक्षा में प्रशासन या शासन का भूत शोभा ही नहीं देता है. प्राचीन काल में शिक्षा आचार्यो के अधीन थी. आज तो इसके विपरीत हो रहा है. हमारे प्रधान अध्यापक प्राचार्य, शिक्षा अधिकारी, शिक्षा संचालक सभी राजनेताओं को हाथो की कठपुतली बने हुए है.
राजनेतिक दल अपनी वोट बैंक बनाने, अपनी शक्ति के प्रदर्शन में दिशाहीन छात्रों को उपयोग में लेते है, जिससे वे छात्र उन्मुक्त आचरण कर बैठते है. दल विशेष समर्थित नेताओ ने पिछले वर्ष अगस्त माह में माधव कालेज, उज्जैन में चुनाव स्थगित करने की मांग को लेकर कालेज पर धावा बोला, तोड़ फोड़ की. छात्र संघ के चुनाव के प्रभारी प्रो. एम्.एल नाथ के साथ अत्यंत दुर्व्यवहार किया.
राजनीति विज्ञान के प्रो. डॉ. हरभजन सिह सभरवाल के साथ बेरहमी से मारपीट की गई, जिससे उनकी म्रत्यु को गई.
राजस्थान हाई कोर्ट की जयपुर खंडपीठ ने राज्य की सभी शिक्षण संस्थाओं में छात्रसंघ और शिक्षक संघो के चुनाव पर रोक लगाते हुए कहा था. “नेतागिरी की धाक ज़माने के लिए छात्र नेताओ द्वारा शिक्षको के अपमान की घटनाये होती है. राजनेतिक दल छात्र, एकता को विभाजित कर रहे है.
महोदय भारत में शिक्षा का स्तर गिरने का प्रमुख कारण है – राजनीतिक हस्तक्षेप. यहाँ पाठ्यक्रम निर्धारण, शाला या विद्यालय प्रवेश, परीक्षा परिणाम, छात्र संघ निर्वाचन, संस्था की मान्यता शिक्षको की नियुक्ति, स्थानान्तरण, पद स्थापना, उच्चशिक्षा में सीटो का आरक्षण आदि समस्त क्षेत्रो में राजनेताओ का प्रभाव या हस्तक्षेप प्रबल रूप में देखने में आता है.
निजी स्वार्थी एवं भ्रष्टाचार में आपादमस्तक डूबे ये नेता शिक्षा जगत की पावन गंगा को प्रदूषित करने में सलग्न है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति माननीय महमूद रहमान ने शिक्षा जगत में आज की भ्रष्ट राजनीति से तंग आकर एक बार कहाँ था.
“I’m not in the university in the future will call for a politician मैं भविष्य में किसी राजनीतिग्य को विश्व विद्यालय में नहीं बुलाऊंगा.” (Party Opposition Debate)
महोदय शिक्षा और राजनीति में सरस्वती और लक्ष्मी के समान वैर होता है. शिक्षा के पावन तपोवन में किसी राजनीतिक दस्यु का प्रवेश वर्जित रहे, इसी में उसकी मर्यादा है, गौरव है.
अंत में, विषय के पक्ष का अपनी सम्पूर्ण मानसिक चेतना के साथ समर्थन करे हुए सदन के समक्ष यही कहना चाहूँगा कि “शिक्षा जगत की कामधेनु को राजनीतिक जगत के साँड़ों से दूर ही रखा जाए. इसी में उसकी सच्चरित्रता सुरक्षित है, उसका शील सुरक्षित है.”
मेरा यही मंतव्य है की शिक्षा जगत में राजनीतिक प्रभाव या हस्तक्षेप अहितकर है.
Intervention in opposition विपक्ष में हस्तक्षेप (Party Opposition Debate)
सदन में प्रस्तावित विषय, शिक्षा जगत में राजनीतिक प्रभाव या हस्तक्षेप अहितकर है. के विपक्ष में अपने विचार व्यक्त करने जा रहा हूँ.
महोदय वर्तमान में राष्ट्र के जीवन में सभी क्षेत्रो में राजनीतिक प्रभाव या हस्तक्षेप स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है. ऐसे घोर राजनीतिक घटाटोप (घने अंधकार) में मुझे तो शिक्षा जगत भी अछूता दिखाई नहीं देता है. मेरे मत में शिक्षा जगत में राजनीतिक प्रभाव या हस्तक्षेप उतना ही आवश्यक है, जितना किसी संयुक्त परिवार में वरिष्ठजन या बुजुर्ग दादाजी का उपस्थित होना आवश्यक होता है. अन्यथा उस परिवार का मार्गदर्शन या नेतृत्व दिशा विहीन हो जाता है.
महोदय शिक्षा का मूल उद्देश्य उत्तम नागरिको का निर्माण करना है, भव्य आत्माओं का निर्माण करना है, भव्य आत्माओ को जन्म देना है. सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्रोत्थान में शिक्षा से बढ़कर अन्य कोई माध्यम उपयुक्त नहीं होता है.
महोदय मेरी राय में राष्ट्र जीवन के विविध क्षेत्रो के सामान ही शिक्षा के क्षेत्र में भी शिक्षा जगत में भी राजनीतिक प्रभाव या हस्तक्षेप अत्यंत आवश्यक है, विद्यालय में प्रवेश लेने, शिक्षकों की नियुक्ति, स्थानान्तरण रुकवाने, पदोन्नति करवाने, शिक्षको के वेतन, भत्ते, एरियर्स आदि स्वीकृत करवाने में आज के भ्रष्ट प्रशासन में आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य हो गया है, अन्यथा कागदी घोड़े दौड़ लगाते रहते है.
महोदय कवि श्री दुष्यन्तकुमार ने अपनी एक कविता में लिखा है.
कभी सिर से सीने तक, कभी सीने से पैर तक. एक जगह हो तो कहूँ, दर्द ही दर्द होता है. ऐसी स्थिति में ऐसे भयंकर दर्द में सपोर्ट लोसन लगाने का काम, रामबाण का काम राजनीतिक नेताओ के प्रभाव या हस्तक्षेप के आलावा कौन कर सकता है?
महोदय आज के भ्रष्टतंत्र में जीवन का ऐसा कौन सा क्षेत्र है, जहाँ नेता की आवश्यकता न हो? मेरे मत में कबीरदास जी की यह उक्ति कि बिन पानी सब सुन के स्थान पर बिन नेता सब सून होना चाहिए. और निंदक नियरे राखिये के स्थान पर मैं तो यही चाहूँगा कि
नेता नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय , बिन नेता या जगत में, सारे काम नसाय.
महोदय पिछले दिनों Party Opposition Debate समाचार पत्रों में है घटनाएं शिक्षा जगत से सम्बंधित प्रकाश में आई. जिनमे अध्यापक के द्वारा शिक्षक के दौरान एक मासूम विद्यार्थी की क्रूरतापूर्वक पिटाई कर उसे विकलांग कर दिया गया. किसी को वन्दे मातरम राष्ट्रीय गीत बोलने पर ही विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया.
ऐसी स्थिति में पालको को न्याय दिलाने का काम कौन करता है? नेता ही न ! महोदय आधुनिक शिक्षण व्यवस्थाओ के नाम पर शिक्षा के क्षेत्र में आडम्बरो को फैलाकर मध्य्म्बर्गीय विद्यार्थियों के पालको की जेबों पर डाका डालने का कुण्ठित प्रयास किया जा रहा है.
शिक्षा के मूल स्वरुप को आम आदमी की पहुँच से दूर कर दिया गया है. ऐसी स्थिति में शासकीय शिक्षण संस्थाओ के बीच दूरियाँ बढ़ती चली जाएगी. इन बिगड़ी हुई व्यवस्थाओ को पुन: पटरी पर लाने का काम हमारे राजनीतिक नेताओं को ही करना पड़ेगा.
महोदय राजनेतिक हस्तक्षेप के कारण ही अनेक विद्यार्थी संगठनों एवं छात्र नेताओ की एक विशाल श्रंखला का निर्माण हुआ है. जिससे राष्ट्र के भविष्य को युवा नेत्रत्व प्राप्त हुवा है. मुझे मालुम है कि विद्यालय भवन के निर्माण से लेकर अपने स्थानान्तरण तक के लिए शिक्षक स्वयं राजनेताओं के प्रभाव के इस्तेमाल के लिए प्रतिदिन लाइन में लगे रहते है. यह धराविक सत्य है, जिन्हें आज की तारीख में झुठलाया नहीं जा सकता.
महोदय मेरा तो मानना है की शेक्षणिक संस्थानों में पल रही मनमानियो पर अंकुश लगाकर उन्हें विद्यार्थियों के हित में सुरक्षित रखने का पवित्र कार्य राजनेतिक दबाव या पोलिटिकल प्रेसर ने बखूबी निभाया है.
अंत में इनाम के लालच में मेरे विपक्षी वक्ताओं यदि आप मेरे तर्को एवं मत से सहमत नहीं होते है, तो मुझे यही करना पड़ेगा कि –
किस किस को आगाह करूँ
किस किस को जाकर समझाऊ ?
जब भाँग पड़ी हो पूरे कूए में,
तब असहाय खड़ा क्या कर पाँऊ.
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