प्रार्थना (Prayer) के बारे में
भवन ही नहीं, बल्कि जहाँ भी मानव रहता है, उसे मंदिर से बहुत कुछ सीखना है, पहली बात हम हरदम पवित्र जमीन पर ही घूमते है. सिर्फ मंदिर में ही हम पवित्र जगह पर नहीं होते. बाजार में भी हम उसी पवित्र जमीन पर ही घूमते है. सिर्फ मंदिर में ही हम पवित्र जगह पर नहीं होते, बाजार में भी हम उसी पवित्र जमीन पर ही घूमते है.
Prayer
तुम्हारी प्रार्थना मात्र मंदिर, मस्जिद, चर्च में ही पूर्ण नहीं होती है, तुम्हारी प्रार्थना तुम्हारी साँस बन जाए. तुम्हे सिर्फ मंदिर में ही अगरबत्ती, फूल, संगीत नहीं बनाना चाहिए, क्योकि प्रत्येक व्यक्ति मंदिर है, भगवान् तुम्हारे भीतर निवास करते है और जहाँ कहीं भी तुम हो, भगवान की सुगंध फैलाओ.
प्रमाणिक धार्मिक व्यक्ति प्रार्थनापूर्ण, प्रेमपूर्ण, सर्जनात्मक होता है, पारस पत्थर जैसा व्यक्ति, जो जिसे भी छू दे, वह सुन्दर जो जाए. मूल्यवान हो जाए. यह तो संभव नहीं है कि हमारे मकान तो नर्क जैसे रहे और कभी-कभार हम मंदिर में प्रवेश करें और स्वर्ग में पहुँच जाए.
यह संभव नहीं है. जब तक कि तुम चोबीस घंटे स्वर्ग में न हों, तुम अचानक मंदिर में प्रवेश कर सको और सब कुछ बदल जाए – अचानक तुम अपनी ईर्ष्या, क्रोध, नफरत प्रतियोगिता, महत्वाकांक्षा, राजनीति को छोड़ दो. तुम अपनी सारी गंदगी को यूँ नहीं छोड़ सकते.
यह धार्मिक व्यक्ति को समझना चाहिए की यह बात किसी विशेष दर्शन को मनाने की नहीं है. यह बात है स्वयं को इस तरह रूपांतरित करने की करुणा तुम्हारी धड़कन बन जाए. अनुग्रह तुम्हारी साँस बन जाए. तुम जहाँ कही हो, तुम्हारी आँखे दिव्य हो, देखे – वृक्षों में, पहाड़ो में, लोगो में, जानवरों में, पक्षियों में जब तक की तुम पूरे अस्तित्व को अपना मंदिर नहीं बना लेते, तुम धार्मिक नहीं हो.
जहाँ कहीं भी तुम जाओ, तुम हमेशा मंदिर में हो, क्योकि तुम रहस्यात्मक ऊर्जा से घिरे हो, जिसे लोग भगवान कहते है. यदि तुम मात्र प्रत्येक रहस्य के प्रति जागरूक हो जाओ, तो तुम्हारा प्रत्येक कृत्य भगवान की पूजा जैसा जो जाएगा और हर भवन मंदिर.