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नयी पुरानी कहानियाँ – Short Stories in Hindi आप लोगो के लिए आपकी मनपसंद कहानी इंडिया के हिंदी ब्लॉग पर जहाँ पर आपको शोर्ट कहानी (Short Stories) का पूरा संग्रह हिंदी में उपलब्ध कराया गया है





नशे की गुलाम आज की युवा पीढ़ी Short Stories





आधुनिक युग में नशा युवावर्ग के लिए फेशन सा बन गया है. नशे का नाम लेते ही हमारी आत्मा में एक अजीब सा कंपन्न उत्त्पन्न होता है तथा अफीम गांजा चरस, हेरोइन, गुटखा, शराब आदि का नाम हमारे दिमांग में उभर आता है, नशा एक ऐसी वस्तु है, जो भविष्य के लिए हानिकारक सिद्ध होती है.





आज का यह कड़वा सच है कि लगातार नशे की आदतों में युवा वर्ग शामिल है कुछ वे होते है, जो पढ़े लिखे नहीं होते है और कुछ वे होते है, जो पढ़े लिखे हो कर भी अनपढ़ के समान है युवा वर्ग जवानी के जोश में अपने होश खो बेठता है. चंद लम्हों के आनद के लिए वे अपनी हसीन जिन्दगी के लम्हों को बिगाड़ देते है.





यह बात उनके दिल और दिमाग से बाहर हो जाती है. युवा वर्ग को नशा कब व किस हालत में छोड़ेगा. यह किसी को भी नहीं पता है. नशा करने वाले युवा भी कई प्रकार के होते है. एक तो वे होते है, जो स्वयं नशे का आनंद जाने का प्रयत्न करते है, दूसरी तरह के वे होते है. जो अपने आपकी किसी भी परेशानी में आकर उससे छुटकारा पाने के लिए नशे का सेवन करते है. अब समय आ गया है कि युवा अपने भविष्य के लिए सचेत हो जाएँ युवाजन इस बातो से वाकिफ हो जाए कि वह भारत देश का सुनहरा भविष्य है.





भारत माता के उज्ज्वल भविष्य के चिराग है. अगर इसी तरह नशे में लिप्त युवाओ की दशा रही तो इस देश का क्या होगा? क्या होगा महापुरुषों के उस बलिदान का, जो अपने प्राणों के आहुति दे गए? क्या इन्ही दिनों के लिए माता पिता बच्चो की परवरिश करते है?





युवाओ के बारे में कहा गया है कि जो चट्टानों को चटका दे





पानी उसको कहते है, जो दिलो पर नक्श हो जाए,





कहानी उसको कहते है, युवा वर्ग को ऐसे ही बनकर





सही दिशा में अपने कदम बढ़ाने होंगे.





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मैडम क्यूरी कहानी Short Stories





मैडम क्यूरी का जन्म ७ नवम्बर १८६७ की पौलेंड (रूस) में हुआ. पिता बलादिस्लाव स्कबोडोवस्की स्कूल मास्टर थे. माँ मादान एक्लोड़ोक्सक स्कूल की प्रधानाध्यापिका थी. उनकी तीन बहने और एक भाई था.





मैडम क्यूरी मान्या का परिवार बहुत ही साधारण था.





पोलेण्ड पराधीन था एवं वहाँ लड़कियों को पढ़ाने का रिवाज बहुत कम था. मान्या के पिता घर पर ही विज्ञान के कुछ प्रयोग करते रहते थे, जो मान्या पढाई में बहुत तेज थी, किन्तु छोटी उम्र से ही मान्या को बहुत को बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.





बीमारी से माता एवं बड़ी बहन चल बसीं. पैसो का आभाव, घर खर्च चलाना मुश्किल, बच्चों की ट्यूशन करके मान्या ने अपनी पढाई पूरी की. मान्या का विवाह पियरे क्यूरी फ्रंसवासी से हुआ. वे बड़े ही प्रतिभाशाली वैज्ञानिक थे. उनके साथ मिलकर मान्या ने खोज की.





संसार में ९२ से भी ज्यादा ऐसे मूलतत्व होते है. जिन्हें जितना बाँटो बारीक से बारीक भांगो में विभाजित करो. उनके साथ मिलकर मान्या ने खोज की.





संसार में ९२ से भी ज्यादा ऐसे मूलतत्व होते है. जिन्हें जितना बाँटो बारीक से बारीक भांगो में विभाजित करो. उनके नेतिक गुण नहीं बदलते. मान्या ने खोज द्वारा यह सिद्ध किया कि युरेनियम धातु द्वारा अदृश्य किरणें निकलती है. जिका नाम रेडियो एक्टिविटी रखा गया और इसी खोज द्वारा उन्होंने रेडियम का पता लगाया. इस खोज पर उन्हें माना दिनिया का नोबेल पुरस्कार मिला. और भी कई खोजो पर दूसरी बार उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला.





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असफलता और सफलता का सफ़र कहानी Story





मैं आपको एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बताना चाहता हूँ. जो बाद में इस दुनिया का सफल व्यक्ति बना. ये २१ साल की उम्र में व्यापार में असफल हुए. २२ साल की उम्र में एक चुनाव में हारे, २४ साल की उम्र में फिर से व्यापर में असफल हुए और २६ साल की उम्र में उनकी पत्नी का देहांत हो गया.





२७ साल की उम्र मानसिक संतुलन खो बेठे. ३४ साल की उम्र में कांग्रेस का चुनाव हार गए और ५२ साल की उम्र में अमेरिका के राष्ट्रपति बने, ये थे अब्राहिम लिंकन.





कहने का तात्पर्य यह है की हर हार के बाद कुछ सिखने को मिलता है और असफलताओ के बाद सफलता अवश्य प्राप्त होती है. वह सफलता सबसे बड़ी होती है. क्योकि छोटी – मोटी लड़ाइयो को जीतने से कुछ नहीं होता. सफल तब होते है, जब युद्ध में विजयी होते है.





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सुख और शांति का मार्ग है मौन – Way of peace and happiness Short Stories





मौन मन को एकाग्र करता है. इसका प्रयोग हमें अंतरमन, स्थित सत्य और विवेक के आदेशो को अपनाने में मदद करता है. म्यांमार के पहाड़ो में एक बोध्द बहुल गाँव था. वहाँ चोरी जैसे अपराध बढ़ गए थे और लोगों का जीना मुश्किल हो गया था. तब इस समस्या से निदान पाने के लिए पंचायत बुलाई गई.





लेकिन पंचायत बुलाई गई. लेकिन पंचायत में लोग एक दूसरे के नाम बोलने लगे. पंचों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. तभी गॉव का एक बुढा धर्म गुरु सामने आया और बोला. “दोष ढूढ़ने का यह मार्ग कतुला बढाएगा और कलुषित करेगा. यहाँ ये दो बातें होगी, वहाँ सत्य नहीं टिक पायेगा. तो आओ, हम नहीं दृष्टी से इसका निदान पायेंगे. यहाँ उपस्थित हम सब लोग एक घंटा मौन रखेंगे और गॉव पर कल्याण भावना से विचार करेंगे.”





सभी ग्रामीण सामूहिक मौन में बेठे. एक घंटे बाद एक युवा उठा व सर झुकाए खड़ा रहा. अपने अपराध को स्वीकार कर वह बोला मैंने ही पशु चुराया है और मारा है. अपनी-अपनी गलती स्वीकार करता हूँ तथा दंड के लिए तैयार हूँ. इस मौन से सभी गॉव वाले व् अपराधी दोनों ही प्रभावित हुए. मौन के महत्व से पूरा गाँव सुख से रहने लगा. इसलिए जीवन की समस्याओ में मौन रखना मन को जाग्रत करता है. जिससे स्वयं को एवं दूसरो का भी भला होता है.





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रेट और पत्थर कहानी Short Stories





एक समय की बात है कि दो मित्र किसी समुद्र के किनारे टहल रहे थे, कुछ देर टहलते-टहलते आपस में कहा सुनी हो गई और एक मित्र ने दुसरे मित्र की गाल पर थप्पड़ मार दिया. जिसने थप्पड़ खाया, उसे तकलीफ हुई और चुप रहा.





मौका पाकर उसने रेट पर लिख दिया. आज मेरे सबसे अच्छे मित्र ने मुझे थप्पड़ मारा. दोनों मित्र कुछ देर और साथ चलते रहे. तत्पश्यात दोनों को समुद्र में नहाने की इच्छा हुई, नहाते नहाते जिस मित्र ने थप्पड़ खाया था, वह समुद्र की लहरों के चपेट में आ गया, और डूबने लगा पर उसके मित्र ने उसे डूबने से बचा लिया.





बाहर आकर उसने उसने चेन की साँस ली और मौका देखकर एक बड़े पत्थर पर लिख दिया. आज मेरे सबसे अच्छे मित्र ने मुझे बचाया. जिन मित्र ने थप्पड़ मारा था, उससे रहा नहीं गया. उसने पूछा. जब मैंने तुम्हे मारा, तब तुमने रेट पर लिखा और जब मैंने तुम्हे बचाया तो तुमने उसे पत्थर पर लिखा, ऐसा क्यों?





तब मित्र ने उत्तर दिया की कोई  हमें तकलीफ पहुँचाता है, तब हमें उसे रेट पर लिखना चाहिए, जहाँ क्षमारुपी हवाए और पानी के झोंके मिटा सके. परन्तु जब कोई हमारे लिए अच्छा करता है, तो उसे हमें पत्थर पर खोद कर लिखना चाहिए.





ताकि मौसमी हवाएँ और पानी भी उसे मिटा न सकें. हमें तकलीफ को रेट पर और अच्छाई को पत्थर पर लिखने की आदत डालनी चाहिए. कहते है कि किसी अच्छे इंसान को मित्र मान लेने के लिए एक घंटा काफी है, और उसकी प्रशंसा के लिए एक दिन काफी है और उससे प्रेम करने के लिए एक सप्ताह, परन्तु उसे भूलने के लिए पूरा जीवन भी कम पड़ता है.





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जज का फैसला कहानी Short Stories





अदालत में दहेज़ संबधी एक अजीब मुकदमा आया, जिसे सुनकर जज साहब का मस्तिष्क भी चकराया. लड़के का पिता कह रहा था, हुजुर देखिये इस लड़की के पिता को, जाने क्या समझता है अपने आप को? कहता है. दहेज देखर रहूँगा. मगर हम कैसे ले ले?





ज़माना क्या कहेगा? हमने दहेज़ न लेने की कसम खाई है, परन्तु इसके अनुसार यदि न लिया तो लोग कहेंगे अनुसार यदि न लिया तो लोग कहेंगे कि लड़की भिखमंगे के घर से आई है. अत: दहेज़ देकर रहूँगा, इस बात पर अड़ रहा है व हमारे न लेने पर हमसे लड़ रहा है.





मामला तनिक गंभीर हो गया. फैसले में उन्होंने सबकी वाहवाही ऐसे लूटी कि सॉप भी मर गया और लाठी भी न टूटी. निर्णय में उन्होंने मिल के पत्थर सा उपाय सुझाया. लड़की को अपनी बहू और लड़के को अपना दामाद बनाया.





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दो महापुरुष कहानी Short Stories





जून १९४० स्थान सेवाग्राम गाँधी जी ने सुभाष से कहा, “तुम्हारा आग्रह है कि जन आन्दोलन छेड़ दिया जाए तुम संघर्ष में ही निखरते हो. तुम्हारा राष्ट्र प्रेम और भारत को स्वतंत्र कराने का संकल्प अद्वितीय है. आत्म बलिदान और कष्ट सहन की भावना में तुम बेजोड़ है.”





लेकिन मैं चाहता हूँ कि इन गुणों का उपयोग अधिक सहीं समय पर किया जाए. यह सुनकर सुभाष का कहना था, “इंग्लेंड इस युद्ध में जीते या हारे, इतना निश्चित है कि वह कमजोर हो जायेगा. फिर थोड़े से प्रयास से ही स्वतंत्रता हमें मिल जायेगी.”





इतना कहकर अधीर होकर सुभाष बाबू, गाँधीजी से बोले, “बापू अगर आप ललकारें तो समूचा राष्ट्र आपके पीछे खड़ा हो जायेगा.” मगर बापू अपनी बात पर डटे रहे वे बोले  “भले समूचा राष्ट्र तैयार हो, फिर भी मुझे वह काम नहीं करना, चाहिए, जिसके लिए यह घड़ी उपयुक्त नहीं है.”





सुभाष तुम्हें मेरे आर्शीवाद की आवश्यकता नहीं है, यदि तुम्हारा अंत: करण यह कहता है की शत्रु पर आक्रमण के लिए यही समय उपयुक्त है तो आगे बड़ो और भरपूर चेष्टा करो. तुम सफल रहे तो मैं तुम्हारा अभिनन्दन सबसे पहले करूँगा.





इस प्रकार सुभाष बापू से हताश होकर १६ जनवरी १९४१ की रात को भारत छोड़कर विश्व की अन्य शक्तियों से मदद की तलाश में नकल पड़े और फिर कभी स्वदेश नहीं लौटे. उन्होंने जापान, कोरिया आदि स्थानों से मदद लेकर आक्रमण किया. सुभाष जी ने उत्तर पूर्वी भारत के अनेक स्थानों व् अंडमान निकोबार द्वीप समूह को अंग्रेजो से आजाद कराया. परन्तु बीच में वे हमें छोड़कर चले गए. वे आजाद भारत को नहीं देख पाए.


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